वैधता के प्रकार - Types of Validity
'नेशनल कमेटी ऑन टेस्ट स्टैण्डर्ड्स' (National Committee on Test Standards) के अनुसार परीक्षण वैधता की जाँच साधारणतया निम्न तीन प्रकार की वैधता के आधार पर की जा सकती है-
(1) विषय-वस्तु वैधता (Content or Curricular Validity) - परीक्षण की विषय- वस्तु वैधता से हमारा आशय है कि हमारे परीक्षण का प्रत्येक पद उस ज्ञान एवं निष्पादन का न्यादर्श होना चाहिए जिस उद्देश्य हेतु परीक्षण की रचना हो रही है।
एनेस्टेसी (Anastasi) ने विषय-वस्तु वैधता को निश्चित शब्दों में इस प्रकार परिभाषित किया है- "विषय-वस्तु वैधता में आवश्यक रूप से विषय-वस्तु का व्यवस्थित परीक्षण निहित होता है जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि क्या यह मापे जाने वाले व्यवहार क्षेत्र का प्रतिनिधिपूर्ण प्रतिदर्श सम्मिलित करता है।" प्रतिनिधित्वता का अर्थ फ्रेडरिक जी. ब्राउन ने इस प्रकार बताया है-"प्रतिनिधित्वपूर्ण न्यादर्श का अर्थ पदों का उनके बल या महत्व के क्रम में चयन करने से है।"
विभिन्न पाठ्य विषयों के ज्ञान, कौशल एवं अन्य शिक्षण उद्देश्यों का मूल्यांकन करने के लिए जो परीक्षाएँ बनायी जाती हैं, उनकी विषय-वस्तु वैधता स्थापित करना अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। उपलब्धि परीक्षणों का प्रमुख उद्देश्य विषय से सम्बन्धित विद्यार्थियों के ज्ञान एवं कौशल आदि का मूल्यांकन करना होता है। विषय-वस्तु वैधता इस प्रकार की परीक्षाओं की प्रमुख विशेषता है। विषय-वस्तु वैधता इस बात की ओर संकेत करती है कि वह परीक्षा उस विषय के ज्ञान का मूल्यांकन कहाँ तक करती है अर्थात् किसी विद्यार्थी ने उस विषय के सम्बन्ध में कितना ज्ञान अर्जित किया है? उस विषय की कितनी समझ उसे है? विषय से सम्बन्धित कौन-कौन से कौशलों में दक्षता प्राप्त की है? आदि।
विषय-वस्तु का अर्थ Subject matter तथा Instructional objectives दोनों से होता है। Subject matter का अर्थ ज्ञान की विभिन्न इकाइयों तथा Instructional objectives विद्यार्थियों में उत्पन्न होने वाले व्यावहारिक परिवर्तनों की ओर संकेत करते हैं।
कोई परीक्षा कहाँ तक इन दोनों का मूल्यांकन करती है यह उसकी विषय-वस्तु वैधता से पता चलता है। 'पाठ्य-वस्तु' को वैधता निकालने के लिए केवल तभी प्रयुक्त किया जा सकता है, जबकि वह शैक्षणिक उद्देश्यों को उपलब्ध कराने में सहायक हो न कि केवल कक्षा में पाठ पढ़ाने के लिए। इसी दृष्टिकोण को अपनाते हुए नेशनल कमेटी ऑन टेस्ट स्टैण्डर्ड्स (1966) ने लिखा है कि "शैक्षणिक उपलब्धि परीक्षण के सन्दर्भ में परीक्षण की विषय-वस्तु को शैक्षणिक उद्देश्यों का परिभाषित रूप ही समझना चाहिए।"
(2) कसौटी सम्बन्धित वैधता (Criterion Related Validity)- जब हम किसी परीक्षा के आधार पर व्यक्तियों की भावी कार्य कुशलता अथवा उपलब्धि के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करना चाहते हैं अथवा वर्तमान में ही इन व्यक्तियों की किसी सम्बन्धित क्षेत्र में उनके निष्पादन का अनुमान लगाना चाहते हैं, तो उस परिस्थिति में हमें परीक्षा की कसौटी सम्बन्धित वैधता पर निर्भर करना होता है।
उदाहरणार्थ, यदि हम यह जानना चाहें कि विद्यार्थियों की बुद्धि का स्तर उनकी आगामी परीक्षाओं में सफलता का कहाँ तक सही-सही भविष्यवाणी कर सकता है, तो हमें बुद्धि परीक्षण की कसौटी सम्बन्धित वैधता का अध्ययन करना होगा। इस प्रकार की वैधता पूर्णकथित वैधता कहलाती है, क्योंकि वह इसे बात की ओर संकेत करती है कि उस परीक्षण के आधार पर एक सम्बन्धित क्षेत्र में व्यक्तियों की उपलब्धि अथवा सफलता के विषय में पहले से ही क्या कहा जा सकता है।
दूसरी स्थिति में परीक्षा का उद्देश्य किसी एक क्षेत्र में व्यक्तियों की वर्तमान योग्यता, कुशलता अथवा व्यवहारों का मापन करना हो सकता है। कोई परीक्षण कितना सही-सही व्यक्तियों की इन वर्तमान विशेषताओं का मापन करता है वह उसकी समवर्ती अथवा संगामी वैधता (Concurrent Validity) कहलाती है। ये दोनों ही प्रकार की वैधताएँ कसौटी सम्बन्धित वैधता के अन्तर्गत आती हैं।
कसौटी सम्बन्धी वैधता ज्ञात करने में सबसे बड़ी समस्या उपयुक्त कसौटी मिलने की रहती है।
प्रायः उपयुक्त एवं वैध कसौटी उपलब्ध नहीं होती जिनके आधार पर किसी निर्माणाधीन परीक्षा की Predictive Validity अथवा Concurrent Validity निकाली जा सके। जिन कसौटियों के आधार पर इस प्रकार की वैधताएँ स्थापित की जाती हैं वे स्वयं में वैध न होने के कारण निर्माणाधीन परीक्षाओं की वैधताएँ भी अधिक विश्वसनीयता नहीं दे पाती। यह एक महत्वपूर्ण समस्या है।
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