जनसंख्या नीति
'नीति' एक कार्य योजना है। लक्ष्यों और आदर्शों का विवरण है, विशेष तौर पर वह जो एक सरकार या राजनीतिक दल आदि बनाते हैं। 'नीति' वर्तमान और भविष्य के निर्णयों का मार्गदर्शन करती है।
'जनसंख्या नीति' को यू.एन.ओ. ने बहुत सीमित अर्थ में परिभाषित करते हुए कहा है कि 'जनसंख्या के आकार, संरचना, वितरण और विशेषताओं को प्रभावित करने का एक प्रयत्न है। यदि जनसंख्या नीति को व्यापक अर्थ में परिभाषित किया जाय तो जनसख्या नीति उन आर्थिक और सामाजिक स्थितियों, जिनके जनांकिकी परिणाम होने की संभावना होती है, को नियंत्रित करने के प्रयत्नों को सम्मिलित करती है।"
डोरोथी नोर्मेमेन ने सीमित अर्थ को प्रत्यक्ष नीति कहा है जो कि जनसंख्या की विशेषताओं पर सीधा प्रभाव डालती है और व्यापक अर्थ को अप्रत्यक्ष नीति कहा है जो कि विशेषताओं को परोक्ष रूप से प्रभावित करती है और कभी-कभी तो उसके उद्देश्य भी स्पष्ट नहीं होते।
भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसमें निर्धनता का प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि की तीव्र दर है। जनसख्या वृद्धि की तीव्रता को देखते हुए विभिन्न जनगणना प्रतिवेदनों में कहा गया है कि हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के कारण समुचित आर्थिक विकास सम्भव नहीं हो पा रहा है। अनेक प्रबुद्ध विद्वानों ने त ने तीव्र जनसंख्या वृद्धि को अंग्रेजी सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीति का परिणाम बताते हुए यह विचार व्यक्त किया कि आर्थिक तथा औद्योगिक प्रगति के बिना जनसंख्या वृद्धि को रोका नहीं जा सकता, परन्तु बाद में इन मनीषियों का यह विचार सत्य की कसौटी पर खरा नहीं उतरा क्योंकि आर्थिक तथा औद्योगिक प्रगति के बावजूद जनसख्या वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया जा सका। सन् 1938 में जनसख्या नियंत्रण विषय को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने, राष्ट्रीय नियोजन समिति के अध्ययन का एक प्रमुख अंग बनाया। इसी समस्या को वृहद स्तर पर अध्ययन के लिए पुनः एक उपसमिति भी बनाई गई। सन 1947 में इस उपसमिति ने अध्ययन कर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसे उसी वर्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रकाशित कर दिया।
भारत की जनसंख्या नीति निम्नांकित बातों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
- जनसख्या का पूर्ण आकार ।
- विकास की ऊँची दर।
- जनसंख्या का ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अनियमित वितरण।
चूँकि हमारी नीति का लक्ष्य जीवन को गुणात्मक रूप से ऊपर से उठाना और व्यक्ति की सुख शांति को बढ़ाना था। इसलिए वह व्यक्तियों की वैयक्तिक सिद्धि और सामाजिक प्रगति की प्राप्ति के बडे उद्देश्यों को प्राप्त करने की एक साधन बन गई। शुरू में 1952 में बनाई गई नीति तदर्थ लचीली और प्रयास एवं भूल पद्धति पर आधारित थी। धीरे-धीरे उसमें अधिक वैज्ञानिक योजना का समावेश हुआ। 1953 में एक परिवार नियोजन शोध और परियोजना समिति का गठन किया गया। 1956 में केन्द्रीय परिवार नियोजन बोर्ड स्थापित किया गया जिसने बंध्याकरण पर बल दिया। 1960 के समय में जनसंख्या के विकास को यथोचित समय में स्थिर करने के लिए एक अधिक सशक्त परिवार नियोजन कार्यक्रम की वकालत की गई। शुरू में सरकार का विश्वास था कि लोगों में परिवार नियोजन कार्यक्रम के प्रति काफी उत्साह है और सरकार को गर्भनिरोध की केवल सुविधाएं ही उपलब्ध करवानी है, लेकिन बाद में यह महसूस किया गया है कि लोगों में प्रेरणा की आवश्यकता है और जनता को इस बारे में शिक्षित करना पड़ेगा। चौथी पंचवर्षीय योजना का प्रमुख उद्देश्य वार्षिक जन्मदर को 1974 के वर्ष तक घटाकर 32 करना था और उसमें परिवार नियोजन को ऊँची प्राथमिकता दी गई वर्ष 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेन्सी एक्ट बनाया गया। पांचवी पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन कार्यक्रम का माँ और शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रमों के साथ एकीकरण किया गया।
FAQ
Q. जनसंख्या नीति का क्या अर्थ है?
Q. जनसंख्या अधिनियम क्या है?
निष्कर्ष
वर्ष 1976 के मध्य में संसद में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति घोषित की गई। इसमें कहा गया कि, चूंकि जनसंख्या वृद्धि का कारण निर्धनता है, अतः सर्वप्रथम निर्धनता दूर करने का अत्यधिक प्रयास किया जाय। वर्ष 1977 में जनता सरकार ने परिवार नियोजन के स्थान पर परिवार कल्याण की संकल्पना को स्वीकार किया तथा इससे संबंधित मंत्रालय का नाम बदलकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण रखा। इस सरकार ने नयी जनसंख्या नीति
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