विधिक सहायता - Legal Aid
संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के सम्मुख समानता अथवा कानून के समान संरक्षण से वचित नहीं रख सकता। वह सुनिश्चित करने के लिए कि उन व्यक्तियों को, जो आर्थिक अथवा अन्य अयोग्यताओं के कारण न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित रह सकते हैं. उपयुक्त कानूनी सहायता प्रदान करें।
इस सम्बंध में संविधान में 42वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 39 जोड़ा गया जो राज्य को आदेश देता है कि यह सुनिश्चित करे कि कानून तन्त्र इस प्रकार कार्य करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक या किसी अन्य अयोग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए, उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था करेगा। संविधान में अनुच्छेद 39 जोड़े जाने का मुख्य उद्देश्य आर्थिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों के लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करना था।
उपरोक्त प्रावधान का अनुसरण करते हुए सितंबर 1980 में सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती की अध्यक्षता में एक उच्च शक्ति प्राप्त समिति का गठन किया गया जिसने विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों के लिए एक आदर्श स्कीम तैयार की। इस स्कीम के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति को जिसकी वार्षिक आमदनी 6000 से अधिक नहीं थी किसी भी उच्च न्यायालय में लाए गए मामले में निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने का प्रावधान था। यह बात ध्यान देने योग्य है कि आमदनी की उपरोक्त सीमा उन मामलों पर लागू नहीं होती थी जहां झगड़े का एक पक्ष अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, विमुक्त जाति, खानाबदोश जाति का है अथवा स्त्री या बच्चा है।
1987 में कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम पारित किया गया जिसमें 1994 में संशोधन किया गया। कानूनी सहायता सम्बन्धी कार्यक्रम को लागू करने तथा उस पर नियन्त्रण रखने के लिए राष्ट्रीय कानून सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया।
इसके अतिरिक्त इस अधिनियम के अन्तर्गत एक सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति का भी गठन किया गया। राज्यों के उच्च न्यायालयों में भी कानूनी सेवा समितियों की स्थापना की जा रही है ताकि जरूरतमंद व्यक्तियों को उन सब मामलों में निःशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाए जो उच्च न्यायालय में आते हैं। अधिनियम में राज्य, जिला तथा तालुका स्तर पर भी कानूनी सेवा समितियों के गठन का प्रावधान है।
कानून के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय कानून सेवा प्राधिकरण आवश्यक कार्यक्रम तथा योजनाएं बनाता है। अधिनियम के अनुसार हर वह व्यक्ति जिसकी आय 9000 रु. प्रतिवर्ष से अधिक नहीं है; निःशुल्क कानूनी सहायता उन सब मामलों में, जो उच्च न्यायालय तथा अन्य आधीनस्थ न्यायालय के सम्मुख आते हैं कानूनी सहायता के योग्य माने जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख आने वाले मामलों में कानूनी सहायता की राशि सीमा 12,000 रु. प्रतिवर्ष निर्धारित की गई है।
यह ध्यान देने योग्य है कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, स्त्रियों, बच्चों व विकलांगों आदि पर यह सीमा लागू नहीं होती। राष्ट्रीय कानून सेवा प्राधिकरण न केवल कानूनी सहायता सम्बन्धी योजनाओं तथा कार्यक्रमों का निरीक्षण व मूल्यांकन करता है बल्कि कानून के बारे में जानकारी देने तथा कमजोर वर्ग के लोगों को कानून के प्रति जागरुक भी करता है।
FAQ
Q. अनुच्छेद 14 कहाँ से लिया गया है?
A. कानून के समक्ष समानता ' की अवधारणा अंग्रेजी संविधान से ली गई है और ' कानूनों के समान संरक्षण ' की अवधारणा अमेरिकी संविधान से ली गई है।
Q. अनुच्छेद 14 15 16 17 18 क्या है?
A. समानता के अधिकार के व्यापक दायरे के अंतर्गत, अनुच्छेद 14, 15 और 16 सामूहिक रूप से कानून के समक्ष समानता और गैर-भेदभाव के सामान्य सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि अनुच्छेद 17-18 सामाजिक समानता को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं।
निष्कर्ष
उल्लेखनीय है कि अब विधिक सहायता को संविधान के अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत एक मौलिक अधिकार माना जाता है और यह सहायता सभी बन्दियों को उपलब्ध है। वास्तव में राज्य से यह अपेक्षा की जाती है कि यह सभी स्वैच्छिक तथा सामाजिक संगठनों को, जो कि कानूनी सहायता कार्यक्रमों में संलग्न हैं आवश्यक सहायता प्रदान करे। साधनों की कमी अथवा कोई अन्य कारण बताकर राज्य इस सम्बंध में अपने उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं हो सकता।
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